Monday 30 January 2012

आई बाबांचे महत्व कळेल का आजच्या पिढीला ? ?

आई बाबांचे महत्व कळेल का आजच्या पिढीला ? ?

आई - बाबा  म्हटला  कि  डोळ्यासमोर   येते  ती   हृदय स्पर्श करणारी  मूर्ती ....ज्यांना  कोणी  आई - बाबा  बोलता  तर  कोणी  माय -बाप   किवा  मोम  - DAD  वगैरे वगैरे . .


२१  शतकात  खरोखरच   आई - बाबांचा  महत्व  अबाधित  राहिला  आहे  का ?
या  बाबाण   बाबत  मी   आज    माझे  विचार  आपल्या  बरोबर   SHARE करणार  आहे ..
त्या  अगोदर  मी  बनवलेल्या   कवितेवर  एक  दृष्टीक्षेप   टाकूया ..

कविता  मोडकी  तोडकी  आहे  पण  आशा  आहे  प्रत्येकाला  काही  तरी  समजेल - उमजेल

                               कविता

मी  पाहिलंय   एकदा  एका   आई - बाबांना ....

रस्त्याच्या   कोपरावर  उदास  होऊन  बसताना ....

डोळ्यातून  ओसंडून  वाहणारे  अश्रू  पाहिलेत  मी  त्यांचे ...
त्या  आस्वान  मधला  दुक्ख  जाणलंय  मी  स्वत ...

रात्र  रात्र  भर   दुखत  बुडताना  पाहिलंय  मी  त्यांना ..
भान  विसरून  मुलाचे  कौतुक  करताना  पाहिलंय  मी  त्यांना ...
 आयुष्याच्या  पुंजीतून  कर्ज  असताना  हि  BIKE   देताना  पाहिलंय  मी  त्यांना ...

SHkanbhar   स्वतच्या  सोयी  विसरून  मुलाला  सूत -बूट देताना  पाहिलंय  मी  त्यांना ..
रात्र  भर  आनासाठी  भटकताना  पाहिलंय  मी  त्यांना ...

 अशा  आई - बाबांना  रात्री  बेरात्री  मुलाने   वृद्धाश्रमात   टाकताना  पाहिलंय  मी  त्यांना ....

का  वागतेय  हि  सध्याची   पिढी  अशी ......

कोणता  आजार  झालाय  या  पिढीला ....

दिवसेन  दिवस  का  हि  अशी  कठोर  आणि  स्वार्थी  होत  चालली  आहे  हि  पिढी ...

कोणीतरी  थोर  कवींनी  म्हटलंय " स्वामी  तिन्ही  जगाचा  आई  विना  भिकारी "

 तर  कोणी  तर  आई  चे  महत्व  पटवताना  चक्क  पांडुरंगाशी  तुलना  करतो ....बोलतो  कसा  कि " आई  तुझ्याविना   जागी  थोर  कोणी  नाही  म्हणुनीच  पांडुरंगाला  हि  म्हणती  विठाई .."
 पूर्वीच्या  काळी  कितेक   मुलांनी  आपले  आयुष्य  आई - बाबांच्या  सेवेत  घालवले ..

खरोखर  आहेत  का  हो  आजची  मुला  अशी ?

श्रावण  बलाने  तर  आपल्या  आई - बाबांना   कावडीने  कशी  यात्रा  घडावी  म्हणून  खांद्यावर  बसवून  नेले ,,,,,,,
आज  ची  पिढी  आहे  का  अशी   खांद्यावर  जुड्या  साधा  हाथ  पकडून  तरी  नील  का  हो  हि  पिढी  आपल्या  आई  -बाबांना ??

खरोखर  आजच्या  पिढीला  आपल्या  सध्या  सुध्या   आई -.बाबांना ची   ओळख  जगाला  करून   द्याला  आवडता  का   ?
बहुतेकांना  तर  वाटता  कि  आपल्या  आई - बाबांच्या  अश्या  पेहरावाला  बघून  आपले  मित्र  हसतील ...बरोबर  न ??

एवढी   स्वस्त  आणि  कमी  पातळीचा  महत्व  झ्हालय  का  हो  आई - बाबांचा ?
जे  मुला  काही  मुला  न  आपल्या  आई - बाबानाची   जगाला  ओळख   दाखवायला  लाज  वाटत  आहे ...?

ती  विसरली  आहेत  का  कि  त्यांच्या  अंगावर  महागडे  कपडे  असण्या  साठी  आई - बाबांनी  कितेक  वर्ष  नवीन   कपडेच  घेतले  नाहीत ...
दर  वेर्शीच्या   फेस्टिवल  ला    बाबांचा  तोच  SHIRt  आणि  आई  ची  तीच  साडी ....

खरोखरच  एवढी   आंधळी  झालीय   का  हि  पिढी ....??

पूर्वीच्या  काळी  तर  असे  काही  होत  न्हवते  मग  आतच  असे  का ?
जग  बदल्य  लागलाय  म्हणून  मानवाच्या  मेंदूतल्या  पेशी  बदलायला  लागल्य्त  कि  काय ?
मग  असा  घडतंय  तरी  काय ? कि  लहाणपणे  आई - बाबांसाठी  मारण्या  -मिटण्याची  वार्ता  करणारी    चाकुला - चाकुली  आता  त्यांना   वृद्धाश्रमात   पाठवत  आहेत . .?

 सध्या  जसा  जसा  जग   बदलायला  लागलाय  तसा  तसा   माणसा  बदलायला  लागली  आहेत ...

बदलत्या   जगाबरोबर  त्यांचे  संस्कार  पण  बदलायला  लागलेत ..
एकत्र  कुटुंब   आता  हळू  हळू  विभक्त  व्हायला  लागल्यात . .
 आई  बाबा  पैसे  कमावण्याच्या  नादात  मुलांना  संस्कार  कमी  आणि  पैसे  जास्त  द्यायला  लागली  आहेत  आणि  त्यना   पालन  घरात  पाठवायला  लागली  आहेत ..

याचेच  दुष्परिणाम   कि  सध्याच्या  पिढीचा  आपल्या  आई - बबन  बद्दलचा  आदर  कमी  व्हायला  लागला   आहे ...

वेळ  प्रसंगी  मुले  आई - बाबांना  बोलायला  लागली  आहेत  कि " मोठे  केलेत  तर  काय  आमच्या  वर  उपकार  नाही  केलेत  ."
खरोखर  या  वागण्याला  आई - बाबा  जबाबदार  आहेत  का ? कि  त्यांचे  अति  लाड ...?

आई  बाबांनी  भोगलेल्या  यातना  मुलांना  होऊ  नये  म्हणून  आई - बाबा   घाम  गले  पर्यंत  कष्ट  करत  आहेत  आणि  मुलांच्या  हौस   भागवत  आहेत ...
पण  यामुळे   मुलांना  आई - बाबांच्या  कष्टाची  वाळूये  काळात  नाही  आहे  का ?
कित्येकांना   ते  महत्वाचा  वाटत  नाही  आहे ..ती  भावना  श्युन्या  झली  आहेत  का ?

आज  काळ  मुलगा  आपल्या  आई  -बाबांना  विचारायच्या  अगोदर   प्रेयसीला  विचारायला  लागला  आहे "  जेवलीस  का ?   कशी  आहेस ? वगैरे वगैरे "

का  हो  हेच  मधुर  शब्द  तो   आई - बबन  बरोबर  बोलू  शकत  नाही  का ?
आई - बाबांना  काय  हवे  असते   मुलां  कडून  ? फक्त  थोडेसे  गोडीचे  शब्द ...

कितेक  मुली  प्रेम  रुपी  रोगाला  फसतात  आणि  कुठे  ते  कस्मे  वाडे  निभावण्य  साठी   २० -२५  वर्षे  ज्यांच्या  बरोबर  आपले  हृनन  बंध  आहेत  त्या  आई -  बाबांना  न  सांगता  आईन   म्हतार  पाणी  त्यांना  सोडून  जातात ...

का  ती  मुली  त्य  मुलाला  आणि  तो  मुलगा  त्या  मुलीला  आई - बाबांसाठी  सोडू  शकत  नाही  का ?

२ -४   वेर्ष्याचे  कस्मे  वाडे  पाळणे  त्यांना  महत्वाचा  वाटत  पण   २० -२५   वर्ष  असणारे  आई - बाबांचे  हृनंबंध  त्यांना  कादिमोल  वाटता  का ?

 खरोखरच  नाही  राहिलंय  का  आई - बाबांना  महत्व ?


घरी  जोपर्यंत  मुलगी  असते  तो  पर्यंत  ती  त्यना  खूप  माया  देते ..पण . ..
तीच  मुलगी   जेव्हा   लग्न  करून  सासरी   जाते   तेव्हा  पासून  तर  ती  तिझ्या  माहेर   ला    जणू    विसरूनच   जाते ...असे  का   होते  हो ?
.
नवर्याचे   आणि   सासरचे   प्रेम   एवढे   मौल्यवान  असते  का   क्की   जे   आई - बाबांच्या   मायेला   कादिमोल   करते ...

लहानपणी   सर्व   वस्तू   आपल्या   म्हणणारी    चाकुली   जेव्हा   मोठी  झाल्यावर   लग्न   केल्यानंतर   असा   का   बोलते   कि  " या  वस्तू  तुमच्या    या  वस्तू  आमच्या "

लग्न  झला  म्हणून  ती  घर  विसरते   कि   घर्तली   माणसा ?..

माणूस  स्वार्थी   व्हायला   लागलाय   का ? कि   त्याच्या   डोळ्यावर   अंधार   यायला  लागलाय ....

मुलाला   आई - बाबांसाठी   वस्तू  घ्यायला   पैसे    नाही   पण   सौभाग्यवतीला   वस्तू  घेऊन  द्यायला   पैसेच   पैसे   आहेत ...

का  काळात  नाही  त्यांना  आई -बाबांचे   कष्ट   आणि   त्यांचे   महत्व ..?

दिवसेन   दिवस   का    हो   हि   वृधाश्रामा   वाढायला  लागलीत ?...
हनुमानाची   शेपटी   तर  काही   संपायलाच   तयार   नाही  आहे ....
अस   का   होतंय ?
पैसे   आणि   लोभाच्या   नादात    माणूस   आई - बाबांना   विसरायला   लागलाय   का ?

पूर्वी    आई    येतो   ग   म्हणणारा   मुलगा   आज   काळ  शेजारून   गेला  तरी   त्याला  बोलायला  वेळ   नाही ...

 घरी   लहानपणी    साधा   पेन   बक्षीस   म्हणून   मिळाला  तरी   सांगायला  धावत   येणारा   मुलगा   आता   आई - बाबांना   सांगायच्या   अगोदर   प्रेयसीला  किवा   सौभाग्यवतीला   सांगायला  का  धावत  आहे ?

 खरोखरच   एवढा   कमी   झालाय   का   आई - बाबांचा   महत्व ?

 नाही .........आई   बाबांचा   महत्व   कधी    कमी   झाला   नाही   आणि   कधी   कमी  होऊच   शकत   नाही ....

मानसिकता   बदलली   आहे  ती   सध्याच्या   पिढीची ...

सांगा   त्या   मुलांना   कि    जावून   या   त्या    अनाथ  आश्रमात    मग   कळेल  तुम्हाला   कि   काय   असतात   ते  पिता   आणि   काय   असते   ती  आई   त्या   अनाथ मुलांसाठी ..

.किती    भांडत असतात   ती   अनाथ  मुले   त्या    अनोळखी   आणि    ज्यांच्याशी  त्यांचा    काहीच   संबंध   नाही   आहे   त्या    आई - बाबांच्या   सुख  साठी ...

कधी  तरी   भेट   त्या   हडपसर   च्या   अनाथ  आश्रमाला    जिथे  एकाच  आई  आहे  " सिंधू  ताई सकपाळ " आणि   तिची   शेकडो   मुले ....

काही   का   असोन   पण  कधी   न   कधी   नक्कीच   कळेल  यांना ...
जेव्हा   स्वत   होतील   हि   आई -बाप   आणि   त्यांची   मुलेही   वागतील  जश्याच   तसे ..

मग   त्यांना   कळेल   काय   केले   आपण   संपूर्ण   आयुष्याबाहार ...

 आपण   तर  केलेय   खूप   मोठे   पाप ..

आणि   तेव्हा   नक्कीच   म्हणतील   ती मुले   " आई -बाबा  मला  माफ  कर "


तेव्हा   नसतील   ते  बाबा   आणि   नसेल   ती  आई ..

असतील   तर   त्यांची    ती  हारा   खाली   झाकलेली     उदास  फोटो  कुठे  एका   घरातल्या  भिंतीवर ....

प्रत्येकाला   एकाच  विनंती  ,,,,,,,,,

घडण्य   अगोदर   असे  काही    स्वीकारा   तुमची   चूक   आणि  पाय  धरून  माफी  मांगा   त्या    आई - बाबांची ..

नक्कीच   माफ   करतील   ते  खुल्या   मानाने  ...

त्यांना   हि  आनंद   होईल   आणि   तुम्हाला  हि ...


एक नम्र विनंती कधीच आपल्या आई - बाबांना दुखवू नका

                                                                                                        --------------संदीप तुकाराम चान्दिवडे

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